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Tree Cultivation

इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, लकड़ी के साथ छाल की मिलती है कीमत

इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, लकड़ी के साथ छाल की मिलती है कीमत

भारत में ऐसे कई पेड़ पाए जाते हैं जिनका औषधीय महत्व है। जो अन्य चीजों के साथ-साथ औषधि बनाने में भी उपयोग में लाए जाते हैं। ऐसा ही एक पेड़ है जिसे हम अर्जुन के नाम से जानते हैं। इसका उपयोग फर्नीचर बनाने के साथ-साथ औषधि बनाने में भी किया जाता है। इस पेड़ की छाल से आयुर्वेदिक काढ़ा बनाया जाता है जो बेड कोलेस्ट्रॉल समेत कई अन्य रोगों को कंट्रोल करने में सहायक होता है। साथ ही इस पेड़ के उत्पादों से कई अन्य रोगों की दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। अर्जुन का पेड़ अधिक तापमान से ज्यादा प्रभावित नहीं होता। इसलिए जिस जगह का तापमान 47 से 48 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता हो, वहां भी यह पेड़ अच्छा विकास करता है। यह पेड़ किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन जलोढ़-कछारी, बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। इन मिट्टियों में यह पेड़ तेजी से विकास करता है। बुवाई से पहले इस पेड़ के बीजों को उबलते हुए पानी में भिगोकर उपचारित करना बेहद आवश्यक है। उपचारित करने के 4 से 5 दिन बाद बीजों में अंकुरण होने लगता है, अर्जुन के पेड़ के 90 से 92 प्रतिशत बीजों में अंकुरण संभव है। अर्जुन के पेड़ को उस जगह लगाना चाहिए जहां सूरज की धूप आती हो। इस पेड़ को जितनी ज्यादा धूप मिलेगी, उसका विकास उतनी जल्दी होगा। छांव वाली जगहों में पेड़ को लगाने से पेड़ का विकास रुक जाएगा। इसलिए अर्जुन के पेड़ को बाग-बगीचों में न लगाएं। इसके साथ ही ध्यान रखें कि अर्जुन के पेड़ के आस पास पानी की उचित निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। पौधे के आस पास जल का जमाव होने से वह सड़ भी सकता है। यह भी पढ़ें: इस पेड़ की खेती करके किसान भाई कर सकते हैं अच्छी खासी कमाई अर्जुन का पौधा लगाने पर इसका पेड़ बनने में 15 से 16 साल का वक्त लगता है। इस अवधि में यह पूरी तरह से तैयार हो जाता है। इस दौरान इसकी लंबाई लगभग 12 मीटर और तने की चौड़ाई 59-89 सेमी तक हो जाती है। भारतीय बाजार में इस पेड़ की छाल की जबरदस्त डिमांड है, इसलिए छाल महंगे दामों पर बिकती है। साथ ही किसान भाई इस पेड़ की लड़की बेंचकर भी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर के साथ कई अन्य कामों के लिए किया जाता है।
चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसी कड़ी में यहां वृक्षों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। कुछ वृक्ष तो व्यावसायिक उपयोग में लिए जाते हैं। वहीं, कुछ वृक्षों में औषधीय गुण विघमान होते हैं। बाजार में औषधीय पेड़ के बीज, पत्ती, छाल, जड़ एवं लकड़ी की अच्छी-खासी कीमत मिल जाती है। विश्वभर में पेड़ों के उत्पादन का चलन बढ़ता जा रहा है। यह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अहम भूमिका अदा करता हैं। मृदा को बांधे रखने एवं भूजल स्तर को अच्छा करने में भी वृक्षों की अहम भूमिका है। फर्नीचर और औषधियों के लिए पेड़ों की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। देश में कुछ पेड़ों की लकड़ी के सहित छाल, जड़ों, फल और पत्ती में भी औषधीय गुण विघमान होते हैं। यही वजह है, जो बाजार में इन वृक्षों की अच्छी खासी कीमत प्राप्त हो रही है।

चंदन की खेती

चंदन के पेड़ के औषधीय गुणों से आज कौन रूबरू नहीं होगा। देश दुनिया में सफेद एवं लाल चंदन की बेहद मांग है। परंतु, मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं है, क्योंकि
चंदन के पेड़ को तैयार होने में भी काफी वर्ष लग जाते हैं। इसके उपयोग द्वारा परफ्यूम से लेकर शराब, साबुन, सौंदर्य उत्पाद आदि विभिन्न उत्पाद निर्मित किए जाते हैं। इन्हीं सब कारणों के चलते सफेद एवं लाल दोनो तरह के चंदन करोड़ों की कीमत पर विक्रय किए जाते हैं।

महोगनी की खेती

अगर किसान धैर्यपूर्वक महोगनी की खेती करे तो वह महोगनी के उत्पादन से करोडों की आमदनी कर सकता है। बतादें, कि महोगनी के इस पेड़ के लकड़ी, पत्तियां व बीज से लेकर छाल तक काफी अच्छे भाव पर बेचे जाते हैं। परंतु, इस पेड़ को तैयार करने में लगभग 12 वर्ष का समय लग जाता है। अगर हम इसके बीज और लकड़ी की कीमत पर नजर ड़ालें तो इसका बीज 1,000 रुपये किलो वहीं लकड़ी 2000-2200 रुपये क्यूबिक फीट के भाव से बिकती है। साथ ही, इस महोगनी पेड़ के औषधीय गुणों वाली फूल, पत्ती और छाल भी काफी महँगे भावों पर बेची जाती है। इसकी खेती से तकरीबन 1 करोड़ तक की आमदनी की जा सकती है। यह भी पढ़ें: यह पेड़ आपको जल्द ही बना सकता है करोड़पति, इसकी लकड़ी से बनते हैं जहाज और गहने

नीम की खेती

नीम के औषधीय गुणों की बात करें तो यह कलयुग की संजीवनी के समान हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है, कि नीम प्रत्येक गली, मौहल्ले में देखने को मिल जाती है। परंतु, नीम की गुणवत्ता एवं इसके लाभ को जानने के बाद भी लोग इसका उपयोग नहीं करते हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि एंटी-बैक्टीरियल एवं एंटीसेप्टिक, गुणों से युक्त निबौरी, छाल, लकड़ी और नीम की पत्तियों से बनते हैं। जिनको बाजार में काफी ज्यादा कीमत पर बेचा जाता है। इसकी विशेषताओं को ध्यान में रखके लोग मालाबार नीम की खेती करने में रुचि दिखा रहे हैं।

दालचीनी की खेती

अगर हम दालचीनी की बात करें तो रसोई के सर्वाधिक पंसदीदा मसालों में आने वाली दालचीनी अपने आप में एक औषधी है। दालचीनी पेड़ की छाल को मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारत में दालचीनी का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जा रहा है। यहां इससे सौंदर्य और स्वास्थ्य उत्पाद के साथ तेल निकाला जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दालचीनी का व्यवसाय करोड़ों रुपए का है।

आम की खेती

आम के मीठे स्वाद को तो सब जानते हैं, सबने इसका स्वाद भी खूब चखा होगा। परंतु, क्या आपको यह पता है, कि इसकी पत्ती एवं लकड़ी की भी बाजार में काफी मांग रहती है। आम की लकड़ी से समस्त बैक्टीरिया दूर भाग जाते हैं। भारत में हवन पूजा यानी शुभ कार्यों में आम के पत्ते एवं लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसकी लकड़ी बैक्टीरिया नाशक है। यही कारण है, कि पूरे वर्ष इसकी मांग रहती है।
वैज्ञानिकों द्वारा चलाई गई इस परियोजना से किसान कम समय में चंदन की खेती से बनेंगे मालामाल

वैज्ञानिकों द्वारा चलाई गई इस परियोजना से किसान कम समय में चंदन की खेती से बनेंगे मालामाल

चंदन की खेती से कृषक कम लागत लगाकर करोड़ों रूपए तक कमा सकते हैं। परंतु, इसकी पैदावार के लिए 10-15 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, जिसकी वजह से देश के कुछ ही किसान चंदन की खेती करते हैं। साथ ही, केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान ने कम समयांतराल में तैयार होने वाले चंदन के पौधों को विकसित कर रहा है। चंदन का उत्पादन करने से किसान भाइयों को बेहद ही ज्यादा मुनाफा मिलता है। भारत के अधिकांश किसान इसकी खेती की ओर अपनी दिलचस्पी तो दिखाते हैं, परंतु तकनीकी अभाव के कारण वह चंदन की खेती नहीं कर पाते हैं। दरअसल, चंदन के पेड़ों से मुनाफा हांसिल करने के लिए तकरीबन 10-15 सालों तक की लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इसी कड़ी में केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान ने एक पहल की है, जिसमें अच्छे और गुणवत्तापरक चंदन के पौधे विकसित किए जा रहे हैं। फिलहाल इस काम पर वैज्ञानिकों की तरफ से शोध किया जा रहा है, जिससे कि किसानों को कम समयावधि में चंदन की खेती से ज्यादा से ज्यादा फायदा अर्जित हो सके। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि चंदन का उपयोग पूजा-पाठ से लगाकर बाकी विभिन्न प्रकार के शुभ कार्यों में किया जाता है। इसकी वजह से बाजार में चंदन की मांग और कीमत दोनों ही काफी बढ़ जाती हैं।

वैज्ञानिकों की तरफ से चंदन के वृक्षों पर परियोजना जारी

कृषकों की आमदनी में बढ़ोतरी करने के लिए केंद्रीय मृदा और लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) करनाल के वैज्ञानिकों की तरफ से चंदन के बेहतर और गुणवत्तापरक पौधों को विकसित किया जा रहा है। इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक डॉ. राज कुमार ने बताया है, कि चंदन के पौधों पर यह परियोजना कार्य संस्थान के निदेशक डॉ. आरके यादव के दिशा निर्देशन में किया जा रहा है। वर्तमान में भी चंदन के पौधे पर शोध बरकरार चल रहा है। उन्होंने कहा है, कि चंदन के वृक्ष से फायदा उठाने के लिए किसानों को 10-15 वर्षों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वैज्ञानिकों के द्वारा इसी दीर्घकालीन प्रतीक्षा को कम करने के लिए यह परियोजना जारी की गई है। इसके साथ ही चंदन के वृक्ष के पास किस मेजबान पौधे को रखें एवं कितनी खाद, कितना पानी दिया जाए आदि अहम पहलुओं पर भी कार्य चल रहा है, जिससे कि चंदन के पेड़ों से फायदा पाने का समयांतराल कम हो सके। प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार, संस्थान में एक एकड़ जमीन में चंदन के पौधे स्थापित किए गए हैं, जो कि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए हैं।

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किसानों के लिए चंदन का वृक्ष काफी फायदेमंद है

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, चंदन का वृक्ष जितना पुराना होगा, बाजार में उतना ही ज्यादा उसका भाव होता है। यदि देखा जाए तो चंदन का एक पेड़ लगभग 15 वर्ष में तैयार होता है, तो बाजार में उस एक पेड़ की कीमत करीब 70 हजार रुपये से लेकर दो लाख रुपये तक हो सकती है। ऐसी स्थिति में फिलहाल आप अनुमान लगा सकते हैं, तो चंदन की खेती कर किसान कुछ ही वर्षों में लाखों की आमदनी सहजता से कर सकते हैं।

चंदन का पौधा बाकी दूसरे पौधों से खुराक लेता है

चंदन के पौधे के साथ में बाकी दूसरा पौधा भी लगाया जाता है। क्योंकि, यह वृक्ष स्वयं अपनी खुराक दूसरे पौधों की जड़ों से प्राप्त करता है। दरअसल, चंदन के पौधे की जड़ें अन्य दूसरे पौधों की जड़ों को अपने में जोड़ लेती हैं। फिर उसे मिलने वाली खुराक को वह अपनी खुराक में परिवर्तित कर लेता है, जिससे कि पौधा बेहतर ढ़ंग से तैयार हो सके।